
पुरोला, (रंवाई घाटी), जून 2025: उत्तराखंड की पवित्र रंवाई घाटी स्थित पुरोला में कमल नदी के तट पर चल रहा श्री अष्टादश महापुराण ज्ञान यज्ञ न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक जागरूकता का भी केंद्र बन गया है। यज्ञ के तीसरे दिन का आरंभ 41 देव डोलियों और 51 विद्वान ब्राह्मणों-ब्यासगणों की उपस्थिति में मंत्रोच्चारण और पवित्र प्रवचनों के साथ हुआ, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल हुए।
रामचरितमानस से हुई आध्यात्मिक सुबह की शुरुआत
दिन का शुभारंभ आचार्य गौतम कृष्ण के प्रवचनों और भजनों के साथ हुआ। उन्होंने रामचरितमानस के माध्यम से भगवान श्रीराम के आदर्श जीवन की महत्ता बताई। उनके भक्ति गीतों ने माहौल को भक्तिमय बना दिया और श्रोताओं को आत्मिक आनंद से भर दिया।
मत्स्य पुराण: भगवान की कथा, कलियुग की संजीवनी
आचार्य सुदामा गैरोला ने मत्स्य पुराण की व्याख्या करते हुए कहा कि कलियुग में भगवान का नाम ही सबसे बड़ी शक्ति है। उन्होंने बताया कि सत्संग और कथा श्रवण से न केवल आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी आता है।
स्कंध पुराण: धर्म से मोक्ष तक की यात्रा
आचार्य बृजेश नोटियाल ने स्कंध पुराण के माध्यम से श्रोताओं को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार पुरुषार्थों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि धार्मिक मार्ग अपनाकर ही समाज में समरसता और सद्भाव लाया जा सकता है। साथ ही, उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार करते हुए युवाओं से परंपराओं को बचाने की अपील की।
शिव पुराण में शिव की महिमा का वर्णन
मुख्य ब्यास आचार्य शिवप्रसाद नोटियाल ने शिव पुराण की कथा प्रस्तुत की। उन्होंने भगवान शिव की लीलाओं और उनके महान गुणों की चर्चा करते हुए बताया कि शिव केवल संहार के देवता नहीं, बल्कि सृजन और करुणा के प्रतीक भी हैं। सावन में शिव पुराण का पाठ करना विशेष रूप से पुण्यदायक माना गया।
कूर्म पुराण: संस्कृति का गौरव
दूसरे वक्ता आचार्य लोकेश बडोनी ‘मधुर’ ने कूर्म पुराण की कथा सुनाते हुए भारतीय संस्कृति की महानता का बखान किया। उन्होंने विवाह जैसे पवित्र आयोजनों में हो रहे भौंडे प्रदर्शन और मांस-शराब जैसी कुप्रथाओं की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यदि समाज सुधार की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो हमारी सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ सकती है।
समाज सुधार की पुकार और आयोजकों का संकल्प
इस अवसर पर वक्ताओं ने सभी धर्मप्रेमियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और युवाओं से आह्वान किया कि वे परंपराओं की रक्षा करें और समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने में सहभागी बनें। आयोजन समिति के संयोजक डॉ. चंद्रशेखर नौटियाल, अध्यक्ष उपेंद्र असवाल, सचिव बृजमोहन सजवाण सहित कई गणमान्य लोगों की मौजूदगी रही।
श्री अष्टादश महापुराण ज्ञान यज्ञ के माध्यम से पुरोला न केवल आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर है, बल्कि सामाजिक सुधार की ओर भी एक मजबूत कदम बढ़ा रहा है। इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि धर्म केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाली जीवन शैली है।