मुंबई: पिछले पांच वर्षों में तीन मुख्यमंत्री और चार उपमुख्यमंत्रियों की अदला-बदली देख चुकी महाराष्ट्र की जनता एक बार फिर विधानसभा चुनाव के लिए मतदान कर रही है। इस चुनाव में ओबीसी एकीकरण, मराठा आरक्षण और योजनाओं की जंग जैसे मुद्दे प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति और कांग्रेस के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) इन चुनावों में अपनी-अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में जुटी हैं।
ओबीसी वोटों पर महायुति की नजर
महायुति गठबंधन ने ओबीसी समुदाय को एकजुट करने पर जोर दिया है। बीजेपी ने “एक हैं तो सुरक्षित हैं” के नारे के साथ ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की है। मराठा आरक्षण को लेकर ओबीसी में आरक्षण कम होने की आशंका ने बीजेपी को इस वर्ग के वोटरों के करीब पहुंचने का मौका दिया है। हालांकि, मराठा और ओबीसी हितों को संतुलित करना गठबंधन के लिए चुनौती बना हुआ है।
एमवीए का मराठा समर्थन और संभावनाएं
महा विकास अघाड़ी मराठा आरक्षण के समर्थन में मुखर रही है, जिससे मराठा समुदाय के वोट उसकी ओर झुक सकते हैं। मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल के विरोध से महायुति को मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में नुकसान झेलना पड़ सकता है। एमवीए ने सत्ता में आने पर मराठा, धनगर, लिंगायत और मुस्लिम समुदायों के लिए आरक्षण का वादा किया है।
विदर्भ: सत्ता का प्रवेश द्वार
62 सीटों वाले विदर्भ क्षेत्र में बीजेपी और एमवीए के बीच कड़ा मुकाबला है। यह क्षेत्र भाजपा का परंपरागत गढ़ रहा है, लेकिन हालिया लोकसभा चुनावों में एमवीए ने यहां बढ़त हासिल की। कांग्रेस ने किसानों के लिए बेहतर समर्थन मूल्य और बोनस जैसे वादे किए हैं, जो ग्रामीण वोटरों को प्रभावित कर सकते हैं।
योजनाओं की जंग
महायुति ने “लड़की बहन” योजना के तहत महिलाओं को 1500 रुपये कैश देने का वादा किया है, जबकि एमवीए ने इसे मात देते हुए प्रत्येक महिला को 3000 रुपये देने का प्रस्ताव रखा है। किसानों, युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों को लुभाने के लिए भी दोनों गठबंधनों ने रेवड़ियों की झड़ी लगा दी है।
निर्णायक मुकाबला
76 सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है, जो नतीजों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है। महाराष्ट्र का यह चुनाव जातीय समीकरणों, योजनाओं और ग्रामीण संकट के बीच सत्ता के भविष्य को तय करेगा।