
हर साल दोहराई जा रही तबाही
उत्तराखंड में हर साल गर्मियों के मौसम में जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं। ये आग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि जंगलों में बसे वन्यजीवों के जीवन को भी गहरी चोट देती हैं। इसके बावजूद अब तक वन्यजीवों पर पड़ने वाले प्रभाव का कोई व्यापक अध्ययन नहीं हुआ है।
180 घटनाओं में 209 हेक्टेयर क्षेत्र जला
वन विभाग के अनुसार, इस वर्ष अब तक 180 जंगलों में आग लगने की घटनाएं दर्ज की गई हैं। इन घटनाओं में लगभग 209 हेक्टेयर वन क्षेत्र जलकर खाक हो चुका है। आग की यह लपटें जंगल की हरियाली के साथ-साथ वहां रहने वाले हजारों छोटे-बड़े जीवों के जीवन को भी प्रभावित कर रही हैं।
संरक्षित क्षेत्रों में भी नहीं बच पाए वन्यजीव
सबसे चिंताजनक बात यह है कि आग की घटनाएं संरक्षित वन्यजीव क्षेत्रों तक भी पहुंच चुकी हैं। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी नेशनल पार्क जैसे क्षेत्रों में अब तक 12 आग की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिसमें 15 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र जल गया है। यह स्थिति वन्यजीव सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
वन विभाग मानता है नुकसान, लेकिन नहीं है डाटा
उत्तराखंड वन विभाग ने यह स्वीकार किया है कि जंगलों की आग से वन्यजीवों को नुकसान होता है। पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) रंजन कुमार मिश्रा के अनुसार, आग लगने से छोटे कीड़े-मकोड़े, पक्षी, सरीसृप और बड़े स्तनधारी सभी प्रभावित होते हैं। हालांकि, विभाग के पास इससे जुड़ा कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।
स्थानीय सहयोग से किया जा रहा प्रयास
वन विभाग द्वारा आग पर नियंत्रण पाने के लिए स्थानीय लोगों की मदद ली जा रही है। समितियों के माध्यम से निगरानी बढ़ाई जा रही है और आग की घटनाओं पर शीघ्र प्रतिक्रिया दी जा रही है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि केवल निगरानी पर्याप्त नहीं है, बल्कि वन्यजीवों पर प्रभाव का वैज्ञानिक आकलन भी जरूरी है।
वन्यजीव संरक्षण के लिए जरूरी ठोस नीति
अब समय आ गया है कि जंगलों में आग को केवल वृक्षों की हानि के रूप में न देखा जाए। इसके व्यापक प्रभाव को समझते हुए वन्यजीव संरक्षण की नीति तैयार की जानी चाहिए। शोध, निगरानी और नीति-निर्माण के माध्यम से ही वन्यजीवों को इस संकट से बचाया जा सकता है।