
घरेलू शेयर बाजार लाल निशान में खुले
सोमवार को भारतीय शेयर बाजारों ने जोरदार गिरावट के साथ कारोबार की शुरुआत की। बीएसई सेंसेक्स 3360 अंक टूटकर 72,004.23 के स्तर पर खुला, जबकि एनएसई निफ्टी 5 प्रतिशत की गिरावट के साथ 21,758.40 पर आ गया। यह गिरावट अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बिकवाली के माहौल और अमेरिका की नई टैरिफ नीति से उपजे वैश्विक तनाव के कारण आई है।
एशियाई बाजारों में हाहाकार
एशिया के प्रमुख शेयर बाजारों में भी भारी गिरावट देखने को मिली। जापान का निक्केई 225 सूचकांक लगभग 8 प्रतिशत लुढ़क गया, वहीं ऑस्ट्रेलिया का एसएंडपी/एएसएक्स 200 इंडेक्स 6 फीसदी से ज्यादा टूटा। दक्षिण कोरिया के कोस्पी में भी 4.4 प्रतिशत की गिरावट आई। इन आंकड़ों से साफ है कि निवेशकों में वैश्विक मंदी की आशंका गहराती जा रही है और वे सुरक्षित निवेश की ओर बढ़ रहे हैं।
अमेरिका में टेक इंडेक्स पर भारी दबाव
पिछले कारोबारी दिन अमेरिका के प्रमुख तकनीकी इंडेक्स नैस्डैक में भी जबरदस्त गिरावट देखी गई। इंडेक्स 962.82 अंक टूटकर 15,587.79 पर बंद हुआ, जो 5.82 प्रतिशत की गिरावट है। यह संकेत देता है कि नैस्डैक अब अपने दिसंबर के उच्चतम स्तर से काफी नीचे आ चुका है और मंदी के दायरे में प्रवेश कर चुका है। अमेरिका की टैरिफ नीति और व्यापार युद्ध की आशंका से वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बनी हुई है।
भारतीय बाजार शुक्रवार को भी रहे थे दबाव में
शुक्रवार को भी घरेलू शेयर बाजारों में गिरावट दर्ज की गई थी। सेंसेक्स 930 अंक गिरकर 75,364.69 पर और निफ्टी 1.49 फीसदी की गिरावट के साथ 22,904.45 पर बंद हुआ था। हालांकि कुछ शेयरों में मजबूती दिखी, जिनमें बजाज फाइनेंस, एचडीएफसी बैंक, टाटा कंज्यूमर और अपोलो हॉस्पिटल्स शामिल रहे। वहीं, हिंडाल्को, ओएनजीसी, टाटा स्टील, टाटा मोटर्स और सिप्ला जैसे शेयरों में भारी नुकसान हुआ।
निवेशकों की संपत्ति में भारी गिरावट
शेयर बाजार की इस गिरावट का सीधा असर कंपनियों के बाजार पूंजीकरण पर पड़ा है। बीएसई में लिस्टेड कंपनियों की कुल मार्केट वैल्यू 9.47 लाख करोड़ रुपये घटकर 403.86 लाख करोड़ रुपये रह गई। मेटल, आईटी और फार्मा सेक्टर में सबसे ज्यादा दबाव देखने को मिला, जबकि मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स में भी 3-4 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई।
आगे निवेश रणनीति पर बढ़ी चिंता
बाजार की मौजूदा स्थिति को देखते हुए विश्लेषकों का कहना है कि निवेशकों को अल्पकालिक फैसलों से बचना चाहिए और दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान देना चाहिए। वैश्विक घटनाक्रमों, नीति परिवर्तनों और आर्थिक आंकड़ों पर नजर रखना अब जरूरी हो गया है, क्योंकि इनका सीधा प्रभाव बाजार की दिशा पर पड़ने वाला है।