देहरादून: हिमालय अपनी जैव विविधता के लिए मशहूर है और यहां कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। इनमें से एक है ‘आर्चा’ (रियम इमोडी), जो पेट से संबंधित रोगों में बेहद लाभकारी मानी जाती है। रामायण में जिस तरह हनुमान जी ने हिमालय से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए थे, उसी तरह हिमालय की यह जड़ी-बूटी भी अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है।
3000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाई जाती है ‘आर्चा’
- यह दुर्लभ जड़ी-बूटी पश्चिमी हिमालय के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले बुग्यालों और चट्टानी क्षेत्रों में पाई जाती है।
- गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता डॉ. अंकित रावत के अनुसार, ‘आर्चा’ का उपयोग केवल हिमालय क्षेत्र के लोग करते आए हैं, लेकिन यह अन्य लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकती है।
पेट रोगों में कारगर औषधि
- इस पौधे की जड़ों से बनाया गया काढ़ा पेट दर्द, मरोड़, और पेट की गर्मी जैसे विकारों में राहत देता है।
- इसके पत्तों का लेप अंदरूनी चोट और घावों पर लगाया जाता है, जिससे वे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
विलुप्ति का खतरा: खेती की जरूरत
- डॉ. रावत का कहना है कि यह पौधा अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा है।
- इसके संरक्षण और किसानों की आय बढ़ाने के लिए इसकी खेती जरूरी है।
- आर्चा की खेती के लिए दोमट मिट्टी और दिसंबर का समय सबसे उपयुक्त माना गया है।
- बाजार में इसकी कीमत 250 से 500 रुपये प्रति किलो है, जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है।
स्थानीय जीवन का हिस्सा
हिमालय क्षेत्र के लोग सदियों से इस दिव्य जड़ी-बूटी का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते आए हैं। यह न केवल पारंपरिक चिकित्सा में अपनी अहमियत रखती है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी इसे संरक्षित और प्रोत्साहित करना समय की मांग है।
निष्कर्ष
‘आर्चा’ जैसे पौधे हिमालय के खजाने का हिस्सा हैं। इनके संरक्षण और खेती से न केवल स्वास्थ्य लाभ मिलेगा, बल्कि पर्यावरण और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।