
महाराष्ट्र में गन्ना उत्पादक जिलों—पुणे, सोलापुर, सतारा, सांगली और कोल्हापुर—में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से गन्ना उत्पादन में ऐतिहासिक वृद्धि देखी गई है। बारामती के कृषि विकास ट्रस्ट द्वारा शुरू की गई AI आधारित परियोजना ने पारंपरिक खेती को तकनीक से जोड़कर 1000 किसानों के लिए उत्पादन और मुनाफा दोनों में जबरदस्त बढ़ोतरी की राह खोल दी है।
AI से 160 टन प्रति फसल तक उत्पादन का लक्ष्य
मार्च 2024 से शुरू हुई इस परियोजना का उद्देश्य प्रति फसल 160 टन तक गन्ना उत्पादन प्राप्त करना है। ‘सेंटर फॉर एक्सीलेंस फार्म वाइब्स’ नामक इस पहल को ट्रस्ट के ट्रस्टी प्रतापराव पवार ने माइक्रोसॉफ्ट और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से आगे बढ़ाया। इस स्मार्ट खेती मॉडल को कृषि विज्ञान केंद्र, बारामती में लागू किया गया है और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला ने भी इसकी सराहना की है।
राज्य सरकार का बड़ा समर्थन
इस तकनीकी पहल की सफलता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने इसे राज्य भर में विस्तार देने का निर्णय लिया है। आगामी बजट में इस परियोजना के लिए 500 करोड़ रुपये प्रस्तावित किए गए हैं, जिससे 50,000 किसानों को AI आधारित खेती से जोड़ा जाएगा। सरकार द्वारा सब्सिडी और तकनीकी सहायता भी दी जाएगी।
AI से खेती में कैसे आता है बदलाव?
AI तकनीक खेत की मिट्टी, पोषक तत्व, नमी, और रोगों के खतरे का विश्लेषण करती है। यह जानकारी उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों और भूमि सेंसर से मिलती है। साथ ही, बीजों की गुणवत्ता सुधारने और पौधों की बेहतर वृद्धि के लिए AI का प्रयोग किया जाता है। इससे उत्पादन के साथ-साथ खेती की लागत भी कम होती है।
सिंचाई और उर्वरकों का बेहतर नियंत्रण
AI की मदद से ड्रिप सिंचाई प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाया गया है। पारंपरिक पद्धति में जहां प्रति एकड़ 9 करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होती थी, वहीं AI आधारित प्रणाली में यह घटकर 3 करोड़ लीटर रह गई है। इसके अलावा जैविक उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा देकर मिट्टी की गुणवत्ता भी सुधारी गई है।
किसानों के अनुभव और भविष्य की दिशा
दौंड के किसान महेंद्र थोरात ने बताया कि AI तकनीक अपनाने के बाद उन्हें 130 टन तक गन्ना उत्पादन की उम्मीद है। बालासाहेब दोरगे ने कहा कि कीट नियंत्रण और सिंचाई की सटीकता ने उनकी मेहनत को कम और लाभ को अधिक किया है।
AI आधारित खेती: भविष्य का मॉडल
AI तकनीक से न केवल उत्पादन बढ़ रहा है, बल्कि खेती अधिक वैज्ञानिक और पर्यावरण अनुकूल बन रही है। कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मॉडल भारत के कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर, लाभदायक और टिकाऊ बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।