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उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष: बाघ के हमले से बढ़ती दहशत

Human-wildlife conflict in Uttarakhand: Growing panic due to tiger attack

देहरादून: उत्तराखंड में इंसानों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह संघर्ष बढ़ता ही जा रहा है। खासतौर पर बाघों के हमलों ने लोगों को डरा दिया है। सर्दियों के मौसम में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और उसके आसपास के इलाकों में पिछले सात दिनों में तीन लोगों ने बाघ के हमले में अपनी जान गंवाई है।

पिछले 25 वर्षों में 50 से अधिक मौतें

नैनीताल जिले में बीते 25 वर्षों में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से अकेले रामनगर क्षेत्र में बाघों के हमले में 41 लोगों की मौत दर्ज की गई है, जिनमें 17 महिलाएं भी शामिल हैं।

कुछ प्रमुख घटनाएं:

  • 2023: कालागढ़ और तराई पश्चिमी वन प्रभाग में चार लोगों की मौत।
  • 2024: अप्रैल और दिसंबर के बीच पांच मौतें।
  • 2025 (जनवरी): रामनगर क्षेत्र में तीन दिनों के भीतर तीन लोगों को बाघ ने मार डाला।

बढ़ते हमलों के कारण

वन्यजीव प्रेमियों और विशेषज्ञों के अनुसार, बाघों के हमलों में वृद्धि के पीछे कई कारण हैं:

  1. सर्दियों में बाघों का व्यवहार:
    यह बाघों का प्रजननकाल होता है, जिसके कारण वे ज्यादा सक्रिय और आक्रामक हो जाते हैं। इस दौरान उनका एक जगह से दूसरी जगह प्रवास बढ़ता है।
  2. जंगल पर इंसानी निर्भरता:
    सर्दियों में लकड़ी और चारे की जरूरत के चलते ग्रामीण अधिक संख्या में जंगलों में जाते हैं। यह बाघ और इंसानों के बीच संघर्ष का मुख्य कारण बनता है।
  3. मानवीय दखल:
    पर्यटन जोन और जंगल के किनारे मानवीय गतिविधियों का बढ़ना बाघों के प्राकृतिक वास में खलल डालता है।
  4. ध्वनि प्रदूषण:
    वाहनों का शोर, ट्रैफिक और शादियों में बजने वाले डीजे भी बाघों के व्यवहार में बदलाव का कारण बन रहे हैं।

विशेषज्ञों की राय और सुझाव

  • संजय छिम्वाल (वन्यजीव प्रेमी):
    • जंगल के किनारे सोलर फेंसिंग और गश्त बढ़ाई जाए।
    • इंसानों की जंगल पर निर्भरता कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में चारे और ईंधन का इंतजाम किया जाए।
    • बाघों के लिए अलग से कॉरिडोर विकसित किए जाएं।
  • दीप रजवार (वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर):
    • बाघ इंसानों को उनके झुके हुए बॉडी पोस्चर के कारण हिरण समझ लेते हैं। ग्रामीणों को जंगल में सतर्क रहना चाहिए और ऐसी मुद्रा से बचना चाहिए।
  • इमरान खान (वन्यजीव प्रेमी):
    • इंसानों को बाघों के साथ सह-अस्तित्व में जीना सीखना होगा।
    • ध्वनि प्रदूषण और जंगल में मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित करने की जरूरत है।

वन विभाग का कदम

वन विभाग के अधिकारी दिगंत नायक (डीएफओ, रामनगर) के अनुसार:

  • ग्रामीणों को सर्दियों में जंगल जाने से रोकने के लिए सब्सिडी पर ईंधन लकड़ी दी जाएगी।
  • वन विभाग सोलर फेंसिंग, झाड़ियों की कटाई और चारा उपलब्ध कराने के लिए बजट की योजना बना रहा है।
  • जंगल के किनारे रहने वाले ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है कि बाघों के प्रजननकाल में जंगलों से दूर रहें।

2025 में बाघों का आतंक

साल 2025 के पहले महीने में ही रामनगर क्षेत्र में तीन लोगों की मौत हो चुकी है:

  1. 8 जनवरी: लकड़ी लेने गई महिला को बाघ ने मार डाला।
  2. 9 जनवरी: सांवल्दे नेपाली बस्ती में 38 वर्षीय व्यक्ति बाघ का शिकार बना।
  3. 10 जनवरी: बुजुर्ग भुवन चंद्र बेलवाल को देचौरी रेंज में बाघ ने मार डाला।

निष्कर्ष

बढ़ते बाघ-मानव संघर्ष ने न केवल ग्रामीणों को डरा दिया है, बल्कि वन विभाग और वन्यजीव प्रेमियों के लिए भी चिंता का विषय बन गया है। इंसानों और बाघों के सह-अस्तित्व के लिए ठोस कार्य योजना और स्थायी समाधान की जरूरत है।

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