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भीख मांगने वाले बच्चों की तकदीर संवार रही ‘वीरांगना’, शिक्षा की रोशनी से बदल रही जिंदगियां

'Veerangana' is changing the fate of begging children, lives are changing with the light of education

हल्द्वानी: सरकार की कई योजनाओं के बावजूद देश में आज भी हजारों बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। लेकिन हल्द्वानी की ‘वीरांगना’ संस्था ऐसे ही बच्चों के जीवन में उजाला लाने का काम कर रही है। पिछले 13 सालों से यह संस्था उन बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ रही है, जो कभी भीख मांगते थे या कूड़ा बीनते थे। इन बच्चों के हाथों में कटोरे की जगह अब किताबें और कलम नजर आ रही हैं।

गुंजन बिष्ट अरोड़ा की पहल, 300 से ज्यादा बच्चों को मिली नई राह

हल्द्वानी की रहने वाली गुंजन बिष्ट अरोड़ा ने यह मुहिम 13 साल पहले शुरू की थी। उन्होंने उन बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया, जिनके माता-पिता पीढ़ियों से भीख मांगने और कूड़ा बीनने का काम कर रहे थे। शुरुआत में यह काम आसान नहीं था, लेकिन गुंजन ने लगातार मेहनत और जागरूकता के जरिए बच्चों के माता-पिता को समझाया कि शिक्षा ही उनके बच्चों का भविष्य संवार सकती है

आज उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि 300 से अधिक बच्चे शिक्षा से जुड़ चुके हैं। गुंजन का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है कि वे इन बच्चों को शिक्षित कर उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाएं

‘वीरांगना’ संस्था: शिक्षा के साथ भोजन और जरूरत का सामान भी देती है

गुंजन बिष्ट ने ‘वीरांगना’ नाम की संस्था बनाई, जहां भीख मांगने और कूड़ा उठाने वाले बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। यहां सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि बच्चों की भोजन, कपड़े, किताबें और स्टेशनरी जैसी सभी जरूरतें पूरी की जाती हैं

गुंजन बताती हैं कि इन बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए, इसके लिए उनका आधार कार्ड और अन्य प्रमाण पत्र भी बनवाए जाते हैं ताकि उन्हें आगे की शिक्षा में कोई दिक्कत न हो।

हल्द्वानी में खत्म हो रही भिक्षावृत्ति, गुंजन की मेहनत ला रही रंग

गुंजन के अथक प्रयासों का असर अब हल्द्वानी में साफ नजर आने लगा है। कभी जो बच्चे सड़कों पर भीख मांगते दिखते थे, वे अब स्कूल जाते हैं। गुंजन बताती हैं कि बच्चों को समाज और शिक्षा से जोड़ने की यह लड़ाई आसान नहीं थी। कई बार विरोधों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उनके बुलंद हौसले के आगे यह सारी चुनौतियां फीकी पड़ गईं।

आज हालात यह हैं कि हल्द्वानी में भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों की संख्या लगभग शून्य के बराबर हो गई है

बैंक की नौकरी के वेतन से बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाती हैं गुंजन

गुंजन बिष्ट अरोड़ा हल्द्वानी के एक बैंक में कार्यरत हैं और अपनी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा इन बच्चों की पढ़ाई और जरूरतों पर खर्च करती हैं। इसके अलावा, समाज के कुछ लोग भी उनकी इस पहल में सहयोग कर रहे हैं, जिससे इन बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके।

गुंजन का कहना है, “अगर हर कोई एक छोटे-से प्रयास के जरिए जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित करने का संकल्प ले, तो भिक्षावृत्ति और अशिक्षा को पूरी तरह से मिटाया जा सकता है।”

उनकी इस पहल से प्रेरित होकर अब कई अन्य लोग भी गरीब और वंचित बच्चों की शिक्षा में योगदान देने के लिए आगे आ रहे हैं।

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